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सोमवार, 3 अप्रैल 2023

सिविल अधिकार संरक्षण एक्ट-1955 भाग चार (Civil Rights Protection Act-1955 Part Fourth)


 



धारा: 8: कुछ दशकों में अनुज्ञप्तियों का रद्द या निलंबित होना किया जाना:-

जबकि वह व्यक्ति जो धारा- 6 के अधीन किसी अपराध का दोषसिद्ध हो,  किसी ऐसे वृत्ति, व्यापार, आजीविका या नियोजन के बारे में जिस के संबंध में अपराध किया गया हो,  कोई अनुज्ञप्ति किसी तत्समय प्रवृत विधि के अधीन रखता हो, तब उस अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय किसी अन्य ऐसी शास्ति पर जिससे वह व्यक्ति उस धारा के अधीन दंडनीय हो,  प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निर्देश दे सकेगा की वह अनुज्ञप्ति रद्द होगा या ऐसी कालावधी के लिए,  जितनी न्यायालय ठीक समझे,  निलंबित रहेगी और अनुज्ञप्ति को  इस प्रकार रद्द या निलंबित करने वाले न्यायालय का प्रत्येक के आदेश ऐसे प्रभावी होगा, मानो वह आदेश उस प्राधिकारी द्वारा दिया गया  हो, जो किसी ऐसी विधि के अधीन अनुज्ञप्ति को रद्द या निलंबित करने के लिए सक्षम था। 


 स्पष्टीकरण:-

 इस धारा  मैं अनुज्ञप्ति के तहत अनुज्ञा पत्र या अनुजा भी है। 


व्याख्या :

धारा: 8: कुछ दशकों में अनुज्ञप्तियों का रद्द या निलंबित होना किया जाना:-

जब कोई व्यक्ति धारा 6 के अधीन किसी अपराध का दोषसिद्ध हो,  किसी ऐसे वृत्ति, व्यापार, आजीविका या नियोजन के बारे में जिस के संबंध में अपराध किया गया हो और ऐसा कोई  कार्य करने के लिए तत्समय प्रवृत (लागू) किसी विधि के अधीन अनुज्ञप्ति धारण करता हो तो न्यायालय निर्देश दे सकेगा कि ऐसी कोई अनुज्ञप्ति रद्द होगी या न्यायालय ठीक समझे, उसी अवधि के लिए निलंबित कर सकेगा। 

नोट: अनुज्ञप्ति के तहत अनुज्ञापत्र या अनुजा भी  शामिल है। 

धारा:9; सरकार द्वारा किए गए अनुदानों का पुनर्ग्रहण या निलंबन:

जहां की किसी ऐसे लोग पूजा स्थान या किसी शिक्षा संस्थान या छात्रावास का प्रबंधक या न्यासी जिसे सरकार से भूमि या धन का अनुदान प्राप्त हो,  इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध हुआ हो, और ऐसी          

दोषसिद्धि किसी अपील या पुनरीक्षण मैं उलटी  या अभीखंडित ना की गई हो वहां, यदि सरकार की राय में उस मामले की परिस्थितियों में ऐसा करने के लिए समुचित आधार हो तो वह है ऐसे सारे अनुदान या उसके किसी भाग के निलंबन या पुनर्ग्रहण के लिए निर्देश दे सकेगी। 

 व्याख्य:

 धारा 9: सरकार द्वारा किए गए अनुदान ओ का पुनर्ग्रहण या निलंबन:

जहां किसी लोग पूजा स्थान शिक्षा संस्थान या छात्रावास का प्रबंधक जिसे सरकार से भूमि या धन अनुदान प्राप्त होता हो,  इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध हुआ हो तो उसे प्राप्त सारे अनुदान या उसके किसी भाग के निलंबन या पुनर्ग्रहण के लिए न्यायालय निर्देश दे सकेगी,  यदि सरकार की राय में ऐसा करने का समुचित आधार हो। 

धारा:10: अपराध का दुष्प्रेरण:-

 जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा,  वह उस अपराध के लिए उपबंधित दंड से दंडनीय होगा। 

 स्पष्टीकरण:

 लोक सेवक के बारे में जो इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अन्वेषण में जानबूझकर उपेक्षा करता है, वह समझा जाएगा कि उसने इस अधिनियम के अधीन दंड ने अपराध का दुष्प्रेरण किया है। 

 व्याख्या:

 धारा 10: अपराध का दुष्प्रेरण:

 जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, वह उसी अपराध के लिए उपबंधित दंड से दंडनीय होगा।

 लोक सेवक द्वारा अपराध के अन्वेषण में की गई उपेक्षा दुष्प्रेरण का अपराध समझा जाएगा।

 दुष्प्रेरण की परिभाषा:

 धारा 107 भारतीय दंड संहिता के अनुसार वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो 

(1)उकसाता है,

(2) षड्यंत्र में शामिल होता है,

(3) सहायता करता है। 

वस्तुतः दुष्प्रेरण का अर्थ किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाता है। 

धारा 10(क): सामूहिक जुर्माना अधि रोपित करने की राज्य सरकार की शक्ति

(1)यदि विहित रीति में जांच करने के पक्षपात,  राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि किसी क्षेत्र के निवासी इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के किए जाने से संबंधित है, या उसका दुष्प्रेरण कर रहे हैं, या ऐसे अपराध के किए जाने से संबंधित व्यक्तियों को संश्रय रहे दे रहे हैं, या अपराधी या अपराधियों का पता लगाने या पकड़वाने में अपनी शक्ति के अनुसार सभी प्रकार की सहायता नहीं दे रहे हैं,  या ऐसे अपराध के किए जाने के महत्वपूर्ण साक्ष्य को दबा रहे हैं, तो राज्य सरकार राज्य पत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसे निवासियों पर सामूहिक जुर्माने का ऐसे निवासियों के बीच प्रभाजन कर सकेगी जो सामूहिक रूप से ऐसे जुर्माने देने के लिए उत्तरदाई हैं और यह कार्य राज्य सरकार वहां के निवासियों की व्यक्तिगत क्षमता के संबंध में अपने निर्णय के अनुसार करेगी और ऐसा प्रभाजन करने में राज्य सरकार यह भी तय कर सकेगी की एक हिंदू अविभक्त कुटुंब ऐसे जुर्माने के कितने भाग का संदाय करेगा। 

परंतु किसी निवासी के बारे में प्रभावित जुर्माना तब तक वसूल नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके द्वारा उप धारा 3 के अधीन फाइनल की गई अर्जी का निपटारा नहीं कर दिया जाता। 

2 उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना की उद्घोषणा ऐसे क्षेत्र में ढोल पीटकर या ऐसी रीति से की जाएगी,  जिसे राज्य सरकार उक्त क्षेत्र के निवासियों को सामूहिक जुर्माने का अधिरोपण सूचित करने के लिए उन परिस्थितियों में सर्वोत्तम समझे।

 (3) (क) उपधारा (1) के अधीन सामूहिक अधिरोपण  से याप्रभाजन के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति विहित  कालावधी के अंदर राज्य सरकार के समक्ष जिसे वह सरकार इस निमित विन्रिर्दिष्ट  करें,  ऐसे जुर्माने से छूट पाने के लिए या प्रभाजन  के आदेश में परिवर्तन के लिए अर्जी फाइनल कर सकेगा-

 परंतु ऐसी अर्जी फाइनल करने के लिए कोई फीस प्रभावित नहीं की जाएगी। 


(ख) राज्य सरकार या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट प्राधिकारी अर्जीदार को सुनवाई के लिए युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के पश्चात ऐसा आदेश पारित करेगा, जो वह  ठीक समझें:

परंतु इस धारा के अधीन  छूट दी गई या कम की गई जुर्माने की रकम किसी व्यक्ति से वसूलीय  नहीं  होगी  और किसी क्षेत्र के निवासियों पर उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित  कुल जुर्माना उस विस्तार तक कम किया गया समझा जाएगा।

(4) उपधारा (1) मैं किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार,  इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के शिकार व्यक्तियों को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उसकी राय में उपधारा (1) विनिर्दिष्ट व्यक्तियों के वर्ग में नहीं आता है,       उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित सामूहिक जुर्माने से या उसके किसी प्रभाग  का संदाय  करने के दायित्व से छूट  दे सकेगी। 

(5): किसी व्यक्ति द्वारा (उसके अंतर्गत हिंदू अभिभक्त कुटुंब है) संदेय  सामूहिक जुर्माने का प्रभाग,  न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माने की वसूली के लिए दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2  ) द्वारा उपबंधरीति में ऐसे वसूल किया जा सकेगा मानो ऐसा प्रभाग  मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो। 

 व्याख्या:

धारा 10(क): सामूहिक जुर्माना अधि रोपित करने की राज्य सरकार की शक्ति

किसी समुदाय वर्ग के व्यक्तियों के समूह पर इस अधिनियम के तहत किए गए अपराध के लिए सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की शक्ति राज्य सरकार को सौंपी गई है। 

राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के शिकार व्यक्तियों को या किसी ऐसे व्यक्ति को जो राज्य सरकार की राय में विनिर्दिष्ट व्यक्तियों के वर्ग में नहीं आते हैं, को उपधारा (1) के अधीन सामूहिक जुर्माना के  किसी भाग का संदाय करने से छूट प्रदान कर सकेगी। 

धारा 11: पश्चातवर्ती दोषसिद्धि पर वर्धित  शास्ति:

जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का या ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण का पहले तो सिद्धि हो चुकने पर किसी ऐसे अपराध या दुष्प्रेरण का पुनः दोष सिद्धि होगा वह है दोष सिद्धि पर-

(क) द्वितीय अपराध के लिए कम से कम 6 माह और अधिक से अधिक 1 वर्ष की अवधि के कारावास से और से जुर्माने से भी जो कम से कम रुपए 200 और अधिक से अधिक रुपए 500 तक का हो सकेगा, दंडनीय  होगा। 

(ख) तृतीय अपराध के लिए या तृतीय अपराध के पश्चातवर्ती किसी अपराध के लिए कम से कम 1 वर्ष आओ अधिक से अधिक 2 वर्ष की अवधि के कारावास से और जुर्माने से भी, जो कम से कम रुपए 500 और अधिक से अधिक रुपए 1000 तक का हो सकेगा दंडनीय होगा। 

व्याख्या:

 धारा 11.  पश्चातवर्ती (दोबारा) किए गए अपराध के लिए बढ़ा हुआ दंड-

दूसरे अपराध के लिए दंड :

कम से कम 6 माह और अधिक से अधिक 1 वर्ष का कारावास और जुर्माना जो कम से कम रुपए 200 बा अधिक से अधिक के रुपए 500 तक का हो सकेगा 

तीसरी बार के लिए दंड:

 कम से कम 1 वर्ष और अधिकतम 2 वर्ष का कारावास और जुर्माना जो कम से कम रुपए 500 बा रुपए 1000 तक हो सकेगा। 


 धारा 12: कुछ मामलों में न्यायालय द्वारा उपधारा:

 जहां कि इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने वाला कोई कार्य अनुसूचित जाति के सदस्य के संबंध के किया जाए वहां,  जब तक कि प्रतिकूल साबित ना किया जाए,  न्यायालय यह उपधारण करेगा कि वह कार्य अस्पृश्यता  के आधार पर किया गया है। 

व्याख्या:

 धारा -12: कुछ मामलों में न्यायालय द्वारा उपधारणा:

 जहां इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने बाला  कोई कार्य अनुसूचित जाति के सदस्य के संबंध में किया गया हो,  वहां न्यायालय उपधारणा करेगा की ऐसा कार्य अस्पृश्यता के आधार पर किया गया है। 

उप धारणा शब्द का अर्थ:

 उपधारणा का अर्थ होता है कि किसी तथ्य  के बारे में मान कर चलना की ऐसा हुआ होगा या नहीं हुआ होगा या नहीं हुआ होगा भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा -(1) दो प्रकार की उपधारणाओं के बारे में प्रावधान करती है :


(1)उपधारणा कर सकेगा जहां कहीं  यह उपबंधित है कि न्यायालय उप धारणा कर सकेगा, वहां न्यायालय या तो ऐसे तथ्य को साबित हुआ मान सकेगा,  यदि और जब तक वह है ना साबित नहीं किया गया जाता या सबूत की मांग कर सकेगा। 

(2) उपधारणा करेगा :

जहां कहीं उपधारण करेगा शब्द उपबंधित हो, वहां न्यायालय ऐसे तथ्य को साबित मानेगा यदि और जब तक वह है ना साबित नहीं कर दिया जाता।   और आगे जाने अगले लेख मे 




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