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शनिवार, 1 अप्रैल 2023

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम -1993 (Protection of Human Rights Act-1993)

 


मानव अधिकार संरक्षण एक्ट (Protection of Human Rights Act-1993):

             स्वतंत्रता के बाद भारत एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित हुआ। संविधान में वर्णित "मौलिक अधिकारों  नीति निर्देशक तत्वों" ने मानव के गौरवपूर्ण जीवन की व्यवस्था की लेकिन संविधान की स्पष्ट व्याख्या नहीं होने के कारण मानवीय मूल्यों का ह्रास होने लगा। ऐसी स्थिति में सम्मान पूर्वक जीवन जीने के लिए सरकार दुवारा "मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993" पारित किया गया।
 
           मानव अधिकार की स्थापना का प्रथम दस्तावेज "इंग्लैंड का सन 1215 ई. में पारित मैग्नाकार्ट " को मन जाता है और 10 दिसम्बर 1943 को संयुक्त राष्ट्र संघ दुवारा मानव अधिकार की सारभौमिक घोषणा की गयी और यही कारण है की 10 दिसम्बर को सम्पूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 
                  मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम के मुख्य उद्देश्य

1. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन सुरक्षा और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना।
 
2. विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना।
 
3. विधि के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान करना।
 
4. बलात ऋम या वैगर प्रथा को रोकने के साथ -साथ अमानवीय व्यवहार को रोकना।
 
            हम कह सकते है कि -मानवाधिकार से व्यक्ति के जीवन स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से सम्बन्धित ऐसे अधिकार से अभिप्रेरित है जो संविधान दुवारा प्रत्याभूत और अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओ  दुवारा सन्निहित है और भारत के न्यायालयों दुवारा परवर्तनीय है। भारतीय संसद दुवारा 08 जनवरी 1994 से मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु "मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993" को अधिनियमित किया है जिसका विवरण निम्नानुसार है -

                                                                अध्याय 01

                                        प्रारंभिक

धारा 1. संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रारम्भ :

1. ये अधिनियम "मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993" कहलायेगा।

 2. यह सम्पूर्ण भारत में लागू होगा।

                           (परन्तु यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर राज्य पर उसी सीमा तक लागू होगा जहां तक उस का सम्वन्ध उस राज्य प्रयोज्य संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची-1 और सूची-2  में वर्णित किन्ही प्रविष्टियों से सम्बंधित मामलो से है।) परन्तु अभि- अभि अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर में धारा-370 व धारा- 35A को समाप्त कर दिया गया है और लोकसभा व राजयसभा में भी पारित करके पास कर दिया गया है और राष्टपति के हस्ताक्षर भी हो गए है जिससे यह एक अधिनियम बन गया है और अव ऐसा नहीं है जो ऊपर कोष्ठक में लिखा है।

3.  यह 28 दिसंबर 1993 से प्रभाव में आया हुआ समझा जायेगा


धारा- 2. परिभाषाएँ : 

इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ दुवारा अन्यथा अपेक्षित न हो :

1. सशस्त्र बल : सशस्त्र बल से तात्पर्य नौसेना, थल सैनाऔर वायु सैना से है और इसमें अन्य सरकार के सशस्त्र बल भी शामिल है।
 
2.  अध्यक्ष : इसका तात्पर्य राष्टीय आयोग या राज आयोग के अध्यक्ष से है।
 
3. आयोग : इसका तात्पर्य धारा- 3 के तहत गठित मानवाधिकार आयोग से है।
 
4. मानव अधिकार आयोग : इसका तात्पर्य संविधान दुवारा गारण्टीकृत और अंतर्राष्टीय प्रसंविदाओ में सम्मानित और भारत के न्यायालयों दुवारा प्रवर्तनीय व्यक्तियों के जीवन स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से है।

5. मानव अधिकार न्यायालय : इसका तात्पर्य धारा-30 में विनिर्दिष्ट मानव अधिकार न्यायालय से है।
 
6. अन्तर्रार्ष्टीय प्रसंविदा: इसका तात्पर्य सिविल और राजनीतिक अधिकार पर अंतर्राष्टीय प्रसंविदा और 16 दिसम्बर 1966 को संयुक्त राष्ट्र की सभा दुवारा अंगीकृत  आर्थिक, सामाजिकऔर सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्टीय प्रसंविदा से है।

7.  सदस्य : इसका तात्पर्य आयोग के या राज्य के जैसी भी स्थिति हो सदस्य से है तथा इसमें अध्यक्ष शामिल है।
 
8. अल्पसंख्यको राष्टीय  आयोग: अल्पसंख्यको के लिए  राष्टीय  आयोग और अधिनियम 1992 की धारा-3 के अधीन गठित अल्पसंख्यको के लिए राष्टीय आयोग से है।
 
9. अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग : इसका तात्पर्य संविधान के अनुच्छेद 338 में वर्णित अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लिए राष्टीय  आयोग से है।
 
10. महिलाओं के लिए  राष्टीय  आयोग: इसका तात्पर्य "महिलाओं के लिए  राष्टीय  आयोग अधिनियम-1990" की धारा-3 के अधीन गठित महिलाओ के लिए राष्टीय आयोग से है।
 
11. अधिसूचना : इसका तात्पर्य शासकीय राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना से है।
 
12. लोकसेवक : इसका तात्पर्य वह होगा जो भारतीय दंड संहिता की धारा-21 में दिया गया है।
 
13. राज्य आयोग : इसका तात्पर्य धारा- 21 के अधीन गठित राज्य मानव अधिकार आयोग से है।
 
                    (इस अधिनियम में कानून का, जो जम्मू और कश्मीर राज्य में प्रवृत नहीं है, किसी भी संदर्भ का उस राज्य के सम्बन्ध में इस तरह अर्थ किया जायेगा जैसे कि मानो वह राज्य के प्रवृत तदनुरूप विधि, यदि कोई हो, का संदर्भ हो। )  परन्तु अभि- अभि अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर में धारा-370 व धारा- 35A को समाप्त कर दिया गया है और लोकसभा व राजयसभा में भी पारित करके पास कर दिया गया है और राष्टपति के हस्ताक्षर भी हो गए है जिससे यह एक अधिनियम बन गया है और अव ऐसा नहीं है जो ऊपर कोष्ठक में लिखा है।

और आगे जाने अगले लेख मे 



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