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रविवार, 2 अप्रैल 2023

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम - 1989 भाग चार (Scheduled Castes and Scheduled Tribes Prevention of Atrocities Act - 1989 Part Fourth)

 


अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम - 1989 भाग चार  (Scheduled Castes and Scheduled Tribes Prevention of Atrocities Act - 1989 Part Fourth)


अध्याय 3 

निष्कासन (धारा 10 - 13)

धारा 10: ऐसे व्यक्ति को हटाया जाना जिसके द्वारा अपराध किए जाने की संभावना है:- 

(1) जहां विशेष न्यायालय का, परिवाद या पुलिस रिपोर्ट पर, यह समाधान हो जाता है कि संभाव्यता है कि कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 244 में यथानिर्दिष्ट  "अनुसूचित क्षेत्रों" या 


"जनजाति क्षेत्रों" में सम्मिलित किसी क्षेत्र से इस अधिनियम के अध्याय 2 के अधीन कोई अपराध करेगा वहां वह, लिखित आदेश द्वारा, ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकेगा कि वह 


ऐसे क्षेत्रों की सीमाओं से परे,  ऐसे मार्ग से होकर और इतने  समय के भीतर हट जाएं, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, और 2 वर्ष से आनधिक ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए,  उस क्षेत्र में जिससे हट जाने का उसे निर्देश दिया गया था, वापस न लौटे। 


(2) विशेष न्यायालय उपधारा (1) के अधीन आदेश के साथ उस उपधारा के अधीन निर्दिष्ट  व्यक्ति को वे आधार संसूचित करेगा जिन पर वह आदेश किया गया है। 



(3) विशेष न्यायालय उस व्यक्ति द्वारा जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश किया गया है, या उसकी और से  किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर किए गए अभ्यावेदन पर ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध  किए जाएंगे उपधारा (1) के अधीन किए गए आदेश को प्रीतिसंहत या उपांतरित कर सकेगा। 


धारा 11: किसी व्यक्ति द्वारा संबंधित क्षेत्र से हटने में असफल रहने और वहां से हटने के पश्चात उस में प्रवेश करने की दशा में प्रक्रिया:- 

(1) यदि कोई व्यक्ति जिसको धारा 10 के अधीन किसी क्षेत्र से हट जाने के लिए कोई निर्देश जारी किया गया है-

(क) निर्देश किए गए रूप में हटने में असफल रहता है, या 



(ख) इस प्रकार हटने के पश्चात उपधारा 2 के अधीन विशेष न्यायालय की लिखित अनुज्ञा के बिना उस क्षेत्र में ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर प्रवेश करता है,

 तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार कर सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान पर, जो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करें, पुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा। 


(2) विशेष न्यायालय लिखित आदेश द्वारा, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया है,  अनुज्ञा  दे सकेगा कि वह उस क्षेत्र में जहां से हट जाने का उसे निर्देश दिया गया था ऐसी अस्थाई अवधि के लिए और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए,  जो ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं, लौट सकता है और अधिरोपित  शर्तों के सम्यक अनुपालन के लिए उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह प्रतिभू  सहित या उसके बिना बंधपत्र निष्पादित करें। 



(3) विशेष न्यायालय किसी भी समय ऐसी अनुज्ञा को प्रतिसंहत कर सकेगा। 

(4) ऐसा व्यक्ति जो ऐसी आनुज्ञा से उस क्षेत्र में वापस आता है।  जिससे उसे हटाने के लिए निर्देश दिया गया था,  अधिरोपित शर्तों का अनुपालन करेगा और जिस अस्थाई अवधि के लिए लौटने की उसे अनुज्ञा दी गई थी उसके अवसान पर या ऐसी अवधि के अवसान के पूर्व ऐसी अनुज्ञा के प्रतिसंहत  किए जाने पर ऐसे क्षेत्र से बाहर हट जाएगा और धारा 10 के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के अनवसित भाग के भीतर नई अनुज्ञा के बिना वहाँ नहीं लौटेगा। 

(5) यदि कोई व्यक्ति अधिरोपित शर्तों में से किसी का पालन करने में या तदनुसार स्वयं को हटाने में असफल रहेगा या इस प्रकार हट जाने के पश्चात ऐसे क्षेत्र उस  संबंधित क्षेत्र में नई अनुजा के बिना प्रवेश करेगा या लौटेगा तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार कर सकेगा और उसे क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान को, जो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करें, पुलिस अभिरक्षा से हटवा सकेगा। 

धारा 12: ऐसे   व्यक्तियों के जिसके विरूद्ध धारा 10 के अभीन  आदेश किया गया है, माप और फोटो  आदि लेना :- 

(1) प्रय्तेक ऐसा  व्यक्तिय  जिसके विरूद्ध धारा 10 के अभीन आदेश किया गया है,   विशेष न्यायालय द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाने पर किसी पुलिस अधिकारी को अपने मैप  और फोटो लेने देगा , 

(2)  यदि उप धारा (1) मैं निर्दिष्ट  कोई व्यक्ति जिससे वह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने  माप और फोटो को लेने दे, इस प्रकार माप और फोटो लिए जाने का प्रतिरोध करता है या उससे इनकार करता है, तो यह विधिपूर्ण  होगा कि माप और फोटो  लिए जाने को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं। 


(3) उपधारा (2) के अधीन लिए जाने वाले माप  या फोटो का प्रतिरोध या उससे इंकार करने को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 186 के अधीन अपराध समझा जाएगा।

 (4).  जहां धारा 10 के अधीन किया गया आदेश प्रतिसंहत कर दिया जाता है वहां उपधारा (2) के अधीन लिए गए सभी माप और फोटो ( जिसके अंतर्गत नेगेटिव हभी है) नष्ट कर दिए जाएंगे या उस व्यक्ति को सौंप दिए जाएंगे जिसके विरूद्ध आदेश किया गया था। 


 धारा 13:  धारा 10 के अधीन आदेश के अनुपालन के लिए शास्ति :-

 वह व्यक्ति जो धारा 10 के अधीन किए गए विशेष न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करेगा, कारावास से, जिसकी अवधि 1 वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने  से दंडनीय होगा। 

अध्याय :4  
विशेष न्यायालय (धारा 14 से 15)

धारा: 14 . विशेष न्यायालय 

(1) राज्य सरकार शीघ्र  विचारण का उपबंध  करने के प्रयोजन के लिए, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए प्रत्येक के जिले में एक सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट करेगी। 

परंतु ऐसे जिलों में जहां अधिनियम के अधीन कम मामले अभिलिखित किए गए हैं, वहां राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहायता से या सहमति से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसे जिलों के लिए सेशन न्यायालय को,  इस अधिनियम के अधीन  अपराधों का विचारण करने के लिए विशेष न्यायालय होना विनिर्दिष्ट करेगी।

परंतु यह और की इस प्रकार स्थापित किया विनिर्दिष्ट  न्यायालयों को इस अधिनियम के अधीन न्यायालयों के अधीन अपराधों का सीधे संज्ञान लेने की शक्ति होगी। 

(2) राज्य सरकार का, यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या में न्यायालयों की स्थापना करने का कर्तव्य होगा कि इस अधिनियम के अधीन मामले, यथासंभव, 2 माह की अवधि के भीतर निपटाए गए हैं,

(3)  विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय मैं प्रत्येक विचारण में कार्यवाहीयों दिन-प्रतिदिन के लिए जारी रहेंगी, जब तक कि उपस्थित सभी साक्षियो की अभिलिखित होने वाले कारणों से उसको आगामी दिन से परे स्थगत करना आवश्यक नहीं पाता हो; 

परंतु जब विचारण, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से संबंधित है, तब विचारण, यथासंभव, आरोप पत्र को फाइल करने की तारीख से 2 माह की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।


धारा 14 (क): अपीले -

(1) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2 ) मैं किसी बात के होते हुए भी, किसी विशेष न्यायालय या किसी अनन्य विशेष न्यायालय के किसी निर्णय, दंडादेश या आदेश, जो अंतवर्ती आदेश नहीं है, के विरुद्ध अपीले  है तथ्यों और बिधी  दोनों के संबंध में उच्च न्यायालय में होंगे। 

(2) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2) की धारा 370 की धारा (3) में किसी बात पर होते हुए भी, विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय के जमानत मंजूर करने या नामंजूर करने के किसी आदेश के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में होगी। 

(3) ततसमय प्रवृत  किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किस धारा के अधीन प्रत्येक, ऐसे निर्णय, दंड आदेश या आदेश से, जिससे अपील की गई है, 90 दिन के भीतर की जाएगी।

 परंतु उच्च न्यायालय 90 दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात ऐसी अपील को ग्रहण कर सकेंगा  यदि उसका समाधान हो जाता है कि अपीलअर्थी  के पास 90 दिन के भीतर अपील नहीं करने का पर्याप्त कारण था;

परंतु यह और की कोई अपील, 180 दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात ग्रहण नहीं की जाएगी। 

(4) उपधारा (1) में की गई प्रत्येक कपिल का निपटारा, यथासंभव, अपील ग्रहण करने की तारीख से 3 माह की अवधि के भीतर होगा।


धारा 15: विशेष लोक अभियोजक:

(1) राज्य सरकार, प्रत्येक के विशेष न्यायालय के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिकारी को जिसने कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय कियाहो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी।

(2) राज्य सरकार, प्रत्येक के अनन्य विशेष न्यायालय के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अनन्य विशेष लोक अभियोजक को भी विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया हो, उस  न्यायालय में मामलो  के संचालन के प्रयोजन के लिए अन्य विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी।  और आगे जाने अगले लेख मे



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